Sanchar Saathi App Not Mandatory: संचार साथी ऐप को लेकर बढ़ते विवाद के बाद केंद्र सरकार ने अपनी स्थिति अब पूरी तरह स्पष्ट कर दी है। मंगलवार को केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि यह ऐप अनिवार्य नहीं होगी और इसे फोन में प्री-इंस्टॉल देने के बावजूद यूजर्स चाहें तो डिलीट कर सकेंगे। इससे पहले दूरसंचार विभाग (DoT) की ओर से स्मार्टफोन कंपनियों को निर्देश दिया गया था कि वे अपने फोन में संचार साथी ऐप पहले से इंस्टॉल करके बेचें, जिसके बाद इस आदेश को लेकर टेक एक्सपर्ट्स और आम लोगों में असंतोष बढ़ गया था।
सरकार के इस आदेश के तहत Apple, Samsung, Xiaomi, Vivo, Motorola और Oppo जैसी कंपनियों से कहा गया था कि वे 90 दिनों के अंदर ऐप को प्री-इंस्टॉल करना शुरू करें और 120 दिनों में सरकार को इसकी कंप्लायंस रिपोर्ट सौंपें। आदेश के पालन न करने पर कंपनियों पर जुर्माने का प्रावधान भी रखा गया था। लेकिन जैसे ही यह निर्देश सार्वजनिक हुआ, तकनीकी विशेषज्ञों, कंपनियों और उपभोक्ताओं ने इस पर सवाल उठाने शुरू कर दिए।
सबसे बड़ा विवाद इस बात को लेकर था कि आखिर यह ऐप किस उद्देश्य से बनाई गई है, इसमें किस तरह का डेटा इकट्ठा होगा और क्या उपयोगकर्ता इसे हटाने का अधिकार रखेंगे या नहीं। कई लोगों ने यह भी कहा कि यह ऐप फोन से अत्यधिक संवेदनशील परमिशन मांगती है, जो उपयोगकर्ताओं की प्राइवेसी पर सवाल खड़े करती हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लोगों ने इस ऐप के स्क्रीनशॉट साझा कर विरोध जताया।
सरकार के इस फैसले से सिर्फ उपभोक्ता और तकनीकी विशेषज्ञ ही नहीं, बल्कि स्मार्टफोन निर्माता कंपनियां भी नाराज थीं। बताया जा रहा है कि Apple सहित कई कंपनियां इस कदम को अपनी वैश्विक पॉलिसी के खिलाफ मान रही हैं और इसे लेकर कानूनी विकल्पों पर विचार कर रही हैं। इसी तरह सिम बाइंडिंग नियम पर भी टेक उद्योग ने चिंता जताई है। सरकार ने फरवरी 2026 से WhatsApp और Telegram जैसे मैसेजिंग ऐप्स के लिए सिम-बाइंडिंग लागू करने की योजना बनाई है, जिसके बाद बिना संबंधित नंबर वाले सिम कार्ड के उपयोगकर्ता इन ऐप्स को इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे।
ब्रॉडबैंड इंडिया फोरम के अध्यक्ष टी.वी. रामचंद्रन ने कहा कि सिम-बाइंडिंग तकनीकी रूप से सभी डिवाइसों पर संतुलित तरीके से काम नहीं कर सकती और इससे डेटा गोपनीयता और कार्यप्रणाली पर प्रभाव पड़ सकता है।
फिलहाल सरकार की नई स्पष्टता से यह साफ हो गया है कि संचार साथी ऐप फोन में मौजूद तो होगी, लेकिन इसे उपयोगकर्ता की पसंद के अनुसार हटाया भी जा सकेगा। अब नज़र इस बात पर है कि स्मार्टफोन निर्माता कंपनियां इस फैसले पर आगे क्या कदम उठाती हैं और क्या यह विवाद यहां शांत होता है या आने वाले समय में और बड़ा रूप लेता है।
