दुर्गा विसर्जन 2025: कलश और मूर्ति विसर्जन का सही तरीका, जानें मंत्र और नियम

दुर्गा विसर्जन के दिन देवी की प्रतिमा के सामने दीपक और धूप जलाना आवश्यक है। इसके बाद माता को फूल, अक्षत, सिंदूर, लाल चुनरी और नारियल अर्पित किया जाता है। फिर हलवा, पूड़ी, खीर और फल का भोग अर्पित करें।

Durga Visarjan 2025: The Right Way to Immerse Kalash and Idol; Mantras and Essential Rules Explained
Durga Visarjan 2025: The Right Way to Immerse Kalash and Idol; Mantras and Essential Rules Explained

दुर्गा पूजा का महापर्व भारतीय संस्कृति का एक अनमोल हिस्सा है। यह पर्व न केवल मां दुर्गा की आराधना का समय होता है, बल्कि सामाजिक और पारिवारिक सौहार्द का भी प्रतीक है। हर वर्ष दशमी तिथि पर माता दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है, जो इस उत्सव का समापन माना जाता है। पश्चिम बंगाल और पूर्वी भारत में इस दिन की एक अनोखी परंपरा है—सिंदूर खेला। इसमें महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर माता को विदाई देती हैं और खुशहाली की कामना करती हैं।

दुर्गा विसर्जन 2025 का मुहूर्त

इस वर्ष दुर्गा विसर्जन 2 अक्टूबर, 2025, बृहस्पतिवार को सुबह 06:15 से 08:37 बजे तक होगा। दशमी तिथि 1 अक्टूबर की शाम 07:01 बजे से प्रारम्भ होकर 2 अक्टूबर 07:10 बजे समाप्त होगी। वहीं, श्रवण नक्षत्र 2 अक्टूबर 09:13 AM से शुरू होकर 3 अक्टूबर 09:34 AM तक रहेगा। इस शुभ समय में माता की प्रतिमा का विसर्जन करना विशेष फलदायी माना जाता है।

दुर्गा विसर्जन की विधि

दुर्गा विसर्जन के दिन देवी की प्रतिमा के सामने दीपक और धूप जलाना आवश्यक है। इसके बाद माता को फूल, अक्षत, सिंदूर, लाल चुनरी और नारियल अर्पित किया जाता है। फिर हलवा, पूड़ी, खीर और फल का भोग अर्पित करें। विधिपूर्वक आरती करने के बाद माता से क्षमा प्रार्थना करना चाहिए कि पूजा में कोई कमी रह गई हो तो उन्हें क्षमा करें। अंत में जल से भरा कलश लेकर माता की विदाई करें और संकल्प लें कि वे अगले वर्ष पुनः पधारें। उसके बाद माता की प्रतिमा को नदी या तालाब में विसर्जित कर दें। यदि आसपास पवित्र जल स्रोत न हो, तो घर पर गंगाजल से स्नान कराकर विदाई दी जा सकती है।

कलश और मूर्ति का विसर्जन

कलश और मूर्ति को विसर्जन स्थल तक ले जाने से पहले पूजा विधि से करें। कलश का जल घर में छिड़कें और मूर्ति से चुनरी, श्रृंगार सामग्री आदि निकालकर जरूरतमंदों को दें या घर में सुरक्षित रखें। मूर्ति विसर्जन करते समय श्रद्धालु माता से पुनः आगमन की प्रार्थना करते हैं और इस विशेष मंत्र का जाप करते हैं:

  • “नमस्तेऽस्तु महादेवि महा मायि सुरेश्वरि। ख्यातं यत् त्वं प्रसन्ना च प्रसन्नं सर्वतो भव॥”
  • “गच्च गच्च परं स्थाना, स्वस्थानं गच्च देवि च। पुनरागमनायाथ सर्वमंगलमस्तु ते॥”

विसर्जन से पहले की परंपराएँ

पूर्वी भारत में विसर्जन से पहले महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर माता को विदाई देती हैं। इसके अलावा भक्तजन सामूहिक रूप से देवी की आरती करते हैं और मूर्ति को ढोल-नगाड़ों के साथ विसर्जन स्थल तक ले जाते हैं। यह सब न केवल उत्सव को भव्य बनाता है, बल्कि सामूहिक भक्ति और सौभाग्य का प्रतीक भी है।

दुर्गा विसर्जन न केवल माता को श्रद्धापूर्वक विदाई देने का अवसर है, बल्कि यह नए साल में सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य और खुशहाली की कामना का भी संदेश देता है। यह पर्व भक्ति, परंपरा और सामूहिक सौहार्द का अद्भुत मेल है।

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