डॉ. जितेंद्र सिंह का दावा- 2033 तक $44 अरब डॉलर पहुँचेगी अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था, निजी भागीदारी से मिलेगी मजबूती

भारत की एक और बड़ी उपलब्धि इसका किफ़ायती नवाचार रहा है। साल 2023 में चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास चंद्रयान-3 की ऐतिहासिक सॉफ्ट लैंडिंग – जो तुलनात्मक अंतरराष्ट्रीय मिशनों की लागत के मुकाबले लगभग आधी लागत में पूरी हुई – ने भारत को वैश्विक पहचान दिलाई।

India's Space Economy to Hit $44 Billion by 2033, Boosted by Private Participation, Claims Dr. Jitendra Singh
India's Space Economy to Hit $44 Billion by 2033, Boosted by Private Participation, Claims Dr. Jitendra Singh

नई दिल्ली: केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने हाल ही में कहा कि भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के साल 2033 तक लगभग 44 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि दशकों से चले आ रहे ऐतिहासिक सुधार और निजी क्षेत्र की सक्रिय भागीदारी देश को एक वैश्विक अंतरिक्ष खिलाड़ी के रूप में उभरने में निर्णायक भूमिका निभा रही है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने एक शिखर सम्मेलन में बोलते हुए कहा कि उपग्रह संचार (सैटकॉम) भारत के डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर की रीढ़ का काम करेगा और उन दूरदराज के इलाकों को जोड़ने में अहम साबित होगा जहाँ भौगोलिक बाधाओं के कारण स्थलीय नेटवर्क नहीं पहुँच पाते हैं। उन्होंने बताया कि चूंकि 70 प्रतिशत से ज़्यादा नए एटीएम ग्रामीण इलाकों में लगाए जा रहे हैं, इसलिए वित्तीय समावेशन सुनिश्चित करने और डिजिटल सेवाओं के विस्तार के लिए उपग्रह संचार अत्यंत महत्वपूर्ण साबित होगा।

तेजी से बढ़ता निजी इकोसिस्टम

मंत्री महोदय ने प्रकाश डाला कि भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था, जिसका मूल्य साल 2022 में 8.4 अरब डॉलर आंका गया था, अगले दशक के दौरान लगभग पाँच गुना बढ़ने की राह पर है। उन्होंने इस वृद्धि का श्रेय न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (एनएसआईएल) के गठन और इन-स्पेस (IN-SPACe) की स्थापना जैसे सुधारों को दिया, जिन्होंने दशकों पुराने सरकारी एकाधिकार को समाप्त कर निजी नवाचार को बढ़ावा दिया है। परिणामस्वरूप, केवल पाँच वर्षों में ही 300 से अधिक अंतरिक्ष स्टार्टअप उभरे हैं, जिससे भारत दुनिया का पाँचवाँ सबसे बड़ा अंतरिक्ष स्टार्टअप इकोसिस्टम बन गया है।

भारत की एक और बड़ी उपलब्धि इसका किफ़ायती नवाचार रहा है। साल 2023 में चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास चंद्रयान-3 की ऐतिहासिक सॉफ्ट लैंडिंग — जो तुलनात्मक अंतरराष्ट्रीय मिशनों की लागत के मुकाबले लगभग आधी लागत में पूरी हुई — ने भारत को वैश्विक पहचान दिलाई। व्यावसायिक रूप से भी भारत ने सफलता हासिल की है और अब तक 433 विदेशी उपग्रहों का प्रक्षेपण किया है, जिससे बड़ी मात्रा में राजस्व प्राप्त हुआ है।

भारत का महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष रोडमैप

भविष्य की ओर देखते हुए, डॉ. जितेंद्र सिंह ने भारत के दीर्घकालिक अंतरिक्ष रोडमैप पर प्रकाश डाला। देश की योजना साल 2035 तक अपना भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने की है। इससे भी बड़ा लक्ष्य है: 2040 तक, एक भारतीय अंतरिक्ष यात्री के चंद्रमा पर उतरने और “विकसित भारत 2047” के विज़न की घोषणा करने की उम्मीद है। इस रोडमैप में अगले 15 वर्षों में 100 से अधिक उपग्रहों को प्रक्षेपित करने की भी परिकल्पना की गई है, जिनमें से अधिकांश सरकारी-निजी भागीदारी के माध्यम से विकसित किए गए छोटे उपग्रह होंगे।

मंत्री महोदय ने यह भी बताया कि अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी कैसे शासन को आकार दे रही है। स्वामित्व (SVAMITVA) जैसे कार्यक्रमों ने उपग्रह मानचित्रण के माध्यम से 1.61 लाख गाँवों के 2.4 करोड़ से अधिक ग्रामीण संपत्ति स्वामियों को भूमि स्वामित्व अधिकार प्रदान किए हैं। उपग्रह अब आपदा प्रबंधन, वन अग्नि निगरानी और कृषि उपज आकलन में अभिन्न अंग बन गए हैं, साथ ही ये गति शक्ति और नेविगेशन के लिए नाविक (NavIC) जैसी प्रमुख योजनाओं को भी सशक्त कर रहे हैं। डॉ. जितेंद्र सिंह ने जोर देकर कहा, “हमारी अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का 70 प्रतिशत हिस्सा विकास और जीवन को आसान बनाने के लिए समर्पित है, न कि केवल रॉकेट प्रक्षेपण के लिए।”

उन्होंने निष्कर्ष में कहा कि भारत के लागत-प्रभावी मिशन, बढ़ती निजी भागीदारियां और महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष रोडमैप देश को वैश्विक नेता के रूप में स्थापित कर रहे हैं।

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