सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: नि:संतान हिंदू विधवा की संपत्ति पति के परिवार को मिलेगी, मायके को नहीं

जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि जब एक महिला की शादी होती है, तो उसकी जिम्मेदारी उसके पति और उसके परिवार की होती है। यदि उसके बच्चे नहीं हैं, तो वह अपनी संपत्ति के लिए वसीयत बना सकती है।

Childless Hindu Widow's Property Will Go to Her Husband's Heirs, Rules Supreme Court
Childless Hindu Widow's Property Will Go to Her Husband's Heirs, Rules Supreme Court

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि यदि किसी नि:संतान हिंदू विधवा की मृत्यु हो जाती है, तो उसकी संपत्ति पर उसके मायके वालों की बजाय ससुराल वालों का अधिकार होगा।

कन्यादान और गोत्र बदलने की परंपरा का हवाला

मामले की सुनवाई कर रहीं जस्टिस बी. वी. नागरत्ना की एकल बेंच ने कहा कि हिंदू विवाह में कन्यादान की परंपरा है, जिसके तहत शादी के बाद महिला का गोत्र बदल जाता है और वह अपने पति के परिवार का हिस्सा बन जाती है। जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि कोर्ट सदियों से चली आ रही इस परंपरा को नहीं तोड़ना चाहता।

सुप्रीम कोर्ट उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था, जिनमें हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 15(1)(बी) को चुनौती दी गई थी। यह अधिनियम प्रावधान करता है कि यदि किसी नि:संतान हिंदू विधवा की बिना वसीयत के मृत्यु होती है, तो उसकी संपत्ति उसके पति के उत्तराधिकारियों को हस्तांतरित हो जाती है।

क्या है पूरा मामला?

कोर्ट को दो ऐसे मामलों के बारे में बताया गया, जिनमें संपत्ति को लेकर विवाद था। पहले मामले में, एक युवा दंपति की कोविड-19 से मृत्यु हो गई। इसके बाद, पति और पत्नी दोनों की मां ने संपत्ति पर दावा किया। दूसरे मामले में, एक निसंतान दंपति की मृत्यु के बाद, पति की बहन ने संपत्ति पर दावा किया।

जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि जब एक महिला की शादी होती है, तो उसकी जिम्मेदारी उसके पति और उसके परिवार की होती है। यदि उसके बच्चे नहीं हैं, तो वह अपनी संपत्ति के लिए वसीयत बना सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि विवाह के बाद वह अपने मायके से भरण-पोषण की मांग नहीं कर सकती।

वकीलों की दलीलें

एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी कि अधिनियम के कुछ प्रावधान महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण हैं और केवल परंपराओं के आधार पर उन्हें समान उत्तराधिकार के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।

इसके जवाब में, केंद्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने अधिनियम का बचाव करते हुए कहा कि इसे बहुत सोच-समझकर बनाया गया है और याचिकाकर्ता सामाजिक संरचना को खत्म करना चाहते हैं।

इन मामलों को अब सुप्रीम कोर्ट मध्यस्थता केंद्र को भेजा गया है ताकि पक्ष समझौते का प्रयास कर सकें, और संवैधानिक प्रश्नों पर भी विचार किया जा सके।

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