Delhi Riots Case: सुप्रीम कोर्ट में 2020 के दिल्ली दंगों से जुड़े मामले में कार्यकर्ता गुलफिशा फातिमा की जमानत याचिका पर सुनवाई हुई।सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान, आरोपी कार्यकर्ता गुलफिशा फातिमा की ओर से उनके वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कई अहम दलीलें पेश कीं। गुलफिशा लगभग छह साल से जेल में हैं और उनकी जमानत याचिका पर जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एनवी अंजारिया की बेंच सुनवाई कर रही थी। सुनवाई के दौरान सिंघवी ने कहा कि ट्रायल में देरी होना हैरान करने वाला है, और उनकी स्मृति में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ।
‘सत्ता बदलने की साजिश’ के आरोपों को बताया बेबुनियाद
एक्टिविस्ट गुलफिशा फातिमा ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष यह दलील रखी कि दिल्ली पुलिस ने जिस कोऑर्डिनेटेड ‘रिजीम चेंज ऑपरेशन’ यानी सत्ता बदलने की साजिश किए जाने का दावा किया है, उसका चार्जशीट में कोई जिक्र नहीं है। गुलफिशा की पैरवी कर रहे सीनियर वकील सिंघवी ने दिल्ली पुलिस से पूछा, ‘आपने अपनी चार्जशीट के सेंटर में रिजीम चेंज का आरोप कहाँ लगाया है?’
उन्होंने अभियोजन पक्ष के उस दावे को भी पूरी तरह बेबुनियाद बताया, जिसमें कहा गया है कि ‘असम को भारत से अलग करने’ के लिए पूरे भारत में साजिश की गई है। सिंघवी ने अदालत के समक्ष पुलिस से ऐसे दावों का आधार बताने को कहा।
सह-आरोपियों की जमानत और ट्रायल में देरी का जिक्र
सिंघवी ने जमानत देने की अपील करते हुए कहा कि फातिमा के खिलाफ आरोप अभी तय नहीं हुए हैं और उन्हें ‘अंतहीन तरीके से हिरासत’ में नहीं रखा जा सकता, खासकर ऐसे मुकदमे में जहाँ 939 गवाहों का जिक्र किया गया हो।
उन्होंने जून 2021 में हाईकोर्ट से मिली जमानत का हवाला देते हुए कहा कि इस मामले के सह-आरोपी नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और आसिफ इकबाल तन्हा को उच्च न्यायालय से जमानत मिल चुकी है। सिंघवी ने तर्क दिया कि फातिमा इस मुकदमे की अकेली महिला आरोपी हैं जो अभी भी जेल में हैं, जबकि कई आरोपियों को 2021 में ही जमानत मिल गई थी। इसे देखते हुए उनका मामला बहुत छोटा है।
‘सीक्रेट मीटिंग’ के दावे को भी किया खारिज
सिंघवी ने जमानत देने की अपील करते हुए कहा कि फातिमा का ‘सीक्रेट मीटिंग’ में शामिल होने का आरोप भी वैसा ही है, जैसे सह-आरोपियों नरवाल और कलिता के खिलाफ लगाए गए थे। उन्होंने कहा कि ‘मिर्च पाउडर, एसिड या किसी और चीज के इस्तेमाल का कोई सबूत नहीं मिला है, और कोई बरामदगी भी नहीं हुई।’ इसके अतिरिक्त, सिंघवी ने तर्क दिया कि बैठक की जानकारी सोशल मीडिया पर अपलोड की गई है, ऐसे में इसे गुप्त बैठक कैसे कहा जा सकता है। उन्होंने यह तर्क दिया कि दिल्ली पुलिस अपने आरोपों को साबित करने में विफल रही है।
दिल्ली दंगा और UAPA के तहत आरोप
फरवरी 2020 में हुए दिल्ली दंगों के मामले में 53 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 700 से अधिक घायल हुए थे। इस मामले में जेएनयू के छात्र उमर खालिद, शरजील इमाम, गुलफिशा फातिमा, मीरान हैदर और रहमान पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून यानी UAPA के तहत गंभीर आरोप लगाए गए हैं और उन्हें दंगों के कथित ‘मास्टरमाइंड’ होने का भी आरोपी बनाया गया है। दिल्ली पुलिस की तरफ से पेश वकील ने कहा कि दिल्ली में दंगे कोई अचानक हुई घटना या हमला नहीं, बल्कि देश की आजादी पर ‘सोच-समझकर, योजनाबद्ध और अच्छी तरह से डिजाइन कर किया गया’ हमला था। ये दंगे करीब पाँच साल पहले नागरिकता (संशोधन) कानून (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) लागू करने की घोषणा के खिलाफ व्यापक विरोध प्रदर्शनों के दौरान भड़के थे।
