Delhi NCR Pollution: दिल्ली-एनसीआर में हवा की स्थिति लगातार खराब हो रही है और शनिवार सुबह एक बार फिर एयर क्वालिटी इंडेक्स खतरनाक स्तर पर पहुंच गया। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और कई मॉनिटरिंग एजेंसियों की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक नोएडा में सुबह 7 बजकर 47 मिनट पर AQI 561 दर्ज किया गया, जो सीधे तौर पर ‘हैज़र्डस’ श्रेणी में आता है। इसका मतलब है कि हवा सामान्य लोगों के लिए भी नुकसानदायक है और सांस या हृदय से जुड़ी बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए यह स्तर जानलेवा साबित हो सकता है।
इसी बीच पर्यावरण संबंधी थिंक टैंक ‘क्लाइमेट ट्रेंड्स’ की नई रिपोर्ट ने एक चिंताजनक तथ्य सामने रखा है। रिपोर्ट के मुताबिक पिछले दस वर्षों यानी 2015 से लेकर नवंबर 2025 तक देश के सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में दिल्ली लगातार सबसे ऊपर रहा है। आधिकारिक विश्लेषण में 11 भारतीय शहरों के एयर क्वालिटी डेटा को शामिल किया गया जिसमें पता चला कि पूरे दशक में एक भी बड़ा भारतीय शहर ऐसा नहीं था जो सुरक्षित एयर क्वालिटी स्तर हासिल कर पाया हो। यह स्थिति सिर्फ मौसमी नहीं बल्कि स्थायी और संरचनात्मक समस्या की ओर इशारा करती है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इंडो-गैंगेटिक प्लेन्स में मौसम और भूगोल हवा की गुणवत्ता को बिगाड़ने वाले दो बड़े कारण हैं। खासतौर पर सर्दियों के दौरान हवा का भारीपन, तापमान में गिरावट और ठंड में बनने वाली धुंध प्रदूषकों को जमीन के नजदीक रोके रखती है, जिससे स्मॉग की परत धीरे-धीरे गहरी और जहरीली हो जाती है। इस साल अक्टूबर में बारिश की कमी और कमजोर वेस्टर्न डिस्टर्बेंस का असर भी दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में समय से पहले स्मॉग बनने की वजह बना। इस कारण हवा में मौजूद जहरीले कण ऊपर उठने की बजाय नीचे ही जमे रहे।
रिपोर्ट यह भी बताती है कि 2020 के बाद कुछ शहरों में मामूली सुधार जरूर देखा गया था लेकिन कोई भी शहर आज तक ‘गुड’ एयर क्वालिटी लेवल तक नहीं पहुंच सका। लखनऊ, अहमदाबाद और वाराणसी जैसे शहर लगातार बेहद खराब वायु गुणवत्ता दर्ज करते रहे जबकि मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और विशाखापत्तनम जैसे तटीय शहरों की स्थिति थोड़ी बेहतर रही, लेकिन वहां की हवा भी स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित नहीं मानी जा सकती। दिलचस्प बात यह है कि पूरे दशक में अगर किसी बड़े महानगर में हवा अपेक्षाकृत साफ मिली तो वह बेंगलुरु रहा, लेकिन उसके स्तर भी सुरक्षित श्रेणी से ऊपर ही दर्ज हुए।
रिपोर्ट के निष्कर्ष यह भी बताते हैं कि चाहे पराली जलाने की घटनाओं में कितनी ही गिरावट क्यों न आई हो, सिर्फ उसी वजह से दिल्ली की हवा साफ नहीं हो रही। इसका मतलब है कि दिल्ली की समस्या क्षेत्रीय नहीं बल्कि स्थानीय स्रोतों जैसे वाहन प्रदूषण, औद्योगिक उत्सर्जन, निर्माण धूल और मौसम की संयुक्त परिस्थितियों का परिणाम है। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर समाधान चाहिए तो कदम भी उसी स्तर पर मजबूत, वैज्ञानिक और स्थायी होने चाहिए।
दिल्ली और आसपास के इलाकों की मौजूदा स्थिति हमें लगातार यह याद दिला रही है कि हवा की बीमारी, आने वाले भविष्य का खतरा नहीं बल्कि आज की सच्चाई बन चुकी है।
