Delhi Car Blast: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में जमीन से जुड़ा एक बड़ा घोटाला सामने आया है, जिसने प्रशासन और जांच एजेंसियों को भी चौंका दिया है। अल-फलाह ग्रुप के फाउंडर जवाद अहमद सिद्दीकी पर करोड़ों रुपये की जमीन पर फर्जी दस्तावेजों के ज़रिये कब्जा करने का आरोप लगा है। जवाद पहले से ही दिल्ली धमाके और मनी लॉन्ड्रिंग केस में ईडी की हिरासत में हैं। अब उन पर जमीन के एक नए फर्जीवाड़े में संलिप्त होने का आरोप जुड़ गया है।
जांच में खुलासा हुआ है कि मदनपुर खादर इलाके की खसरा नंबर 792 वाली कीमती जमीन को जवाद सिद्दीकी से जुड़े तरबिया एजुकेशन फाउंडेशन के नाम फर्जी तरीके से ट्रांसफर किया गया था। जांचकर्ताओं के अनुसार, यह जमीन दक्षिण दिल्ली के एक बेहद प्राइम लोकेशन पर स्थित है और इसका मूल्य कई करोड़ रुपये में आंका जा रहा है। इस मामले में जो GPA यानी जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी इस्तेमाल की गई, वह पूरी तरह फर्जी पाई गई है। इससे भी अधिक चौंकाने वाली बात यह है कि जिन लोगों के नाम पर इस GPA में हस्ताक्षर और अंगूठे के निशान दिखाए गए हैं, वे दशकों पहले ही मर चुके थे।
अधिकारियों ने बताया कि यह फर्जी GPA 7 जनवरी 2004 का तैयार किया गया दस्तावेज़ है। इसमें दावा किया गया था कि जमीन के कई सह–मालिक अपनी हिस्सेदारी विनोद कुमार नामक व्यक्ति के पक्ष में ट्रांसफर कर रहे हैं। दस्तावेज़ में जिन लोगों के हस्ताक्षर दिखाए गए हैं, उनमें नाथू नामक व्यक्ति की मौत 1972 में हुई थी, वहीं हरबंस सिंह, हरकेश, शिव दयाल और जयराम की मौत 1991 से 1998 के बीच दर्ज की गई थी। इसके बावजूद इन सभी मृतकों को 2004 में जमीन बेचने वाले ज़िंदा व्यक्तियों के रूप में दिखाया गया।
जांच एजेंसियों के अधिकारियों ने इसे “डेड मैन साइनिंग स्कैम” बताया है, क्योंकि कोई मृत व्यक्ति GPA जारी नहीं कर सकता या दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर नहीं कर सकता। अधिकारियों ने कहा कि यह दस्तावेज़ न सिर्फ अवैध है, बल्कि इसे बनवाने के पीछे संगठित आपराधिक षड्यंत्र का संकेत मिलता है।
फर्जी GPA के आधार पर 27 जून 2013 को जमीन की एक पंजीकृत सेल डीड तैयार की गई, जिसके ज़रिये जमीन 75 लाख रुपये में तरबिया एजुकेशन फाउंडेशन के नाम ट्रांसफर दिखाई गई। विनोद कुमार ने इसमें कथित रूप से कई सह–मालिकों के प्रतिनिधि के तौर पर दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए। जबकि असलियत यह है कि जिन व्यक्तियों की हिस्सेदारी बेची गई, वे पहले ही मर चुके थे और उन्होंने न तो किसी डील की सहमति दी, न दस्तावेज़ों पर साइन किए।
जांच अधिकारियों को शक है कि यह कोई एक मामला नहीं बल्कि दिल्ली में मृत और गुमशुदा लोगों की जमीनों को फर्जी कागज़ात के ज़रिए कब्ज़ाने वाले एक बड़े रैकेट का हिस्सा हो सकता है। जांच अब यह पता लगाने की दिशा में आगे बढ़ रही है कि इस नेटवर्क में कितने लोग शामिल हैं और कितनी जमीनें इसी तरीके से हड़पी गई हैं।
अधिकारियों का कहना है कि इस मामले से जुड़े दस्तावेज़ों, लेनदेन और संदिग्ध व्यक्तियों के नेटवर्क की जाँच तेज की जा रही है। वहीं, जवाद सिद्दीकी इस मामले में अभी भी ईडी की गिरफ्त में हैं और उनसे पूछताछ चल रही है।
