नई दिल्ली: देशभर के पुलिस स्टेशनों में खराब पड़े सीसीटीवी कैमरों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर सख्त रुख अपनाया है। कोर्ट ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को फटकार लगाते हुए कहा कि उसके आदेशों का पालन नहीं किया जा रहा है और अब इस मामले में ढिलाई बर्दाश्त नहीं की जाएगी। अदालत ने चेतावनी देते हुए स्पष्ट किया कि यदि तीन हफ्ते के भीतर जवाब दाखिल नहीं किया गया, तो अगली सुनवाई में संबंधित राज्यों के मुख्य सचिवों को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में पेश होना पड़ेगा।
इस मामले पर सुनवाई कर रही जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि 14 अक्टूबर को राज्य सरकारों और केंद्र सरकार से जवाब मांगा गया था, लेकिन अब तक अधिकांश राज्यों ने कोई हलफनामा जमा नहीं किया है। सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ दवे ने अदालत को बताया कि अब तक केवल 11 राज्यों ने ही अपना पक्ष रखा है, जबकि बाकी राज्यों की ओर से कोई जवाब नहीं आया है। इतना ही नहीं, केंद्र सरकार ने भी अभी तक NIA समेत अन्य केंद्रीय जांच एजेंसियों से जुड़े जवाब दाखिल नहीं किए हैं।
सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल तुषार मेहता ने केंद्र की ओर से तीन और सप्ताह का समय मांगा, जिसे अदालत ने मंजूरी दे दी। कोर्ट ने साफ कहा है कि अगली सुनवाई 16 दिसंबर को होगी और उस दिन तक सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को अपना हलफनामा पेश करना होगा। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो संबंधित राज्यों के मुख्य सचिवों को व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित होना पड़ेगा।
इस पूरे मामले की पृष्ठभूमि दिसंबर 2020 के उस आदेश से जुड़ी है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने सभी पुलिस थानों और जांच एजेंसियों के कार्यालयों में सीसीटीवी कैमरे लगाना अनिवार्य किया था। बावजूद इसके, कई जगह कैमरे या तो लगाए नहीं गए या वे खराब पड़े हैं। कोर्ट ने इस गंभीरता को तब समझा जब देश में पिछले सात से आठ महीनों में पुलिस हिरासत में 11 मौतों के मामले सामने आए। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 4 सितंबर को इस मुद्दे पर स्वतः संज्ञान लिया और कार्रवाई शुरू की।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह मामला सिर्फ तकनीकी तैयारियों का नहीं, बल्कि नागरिक अधिकारों की सुरक्षा से जुड़ा है। अदालत ने साफ शब्दों में कहा कि किसी भी संदिग्ध या आरोपी को पुलिस कस्टडी में सुरक्षा और न्याय मिलना संविधान की मूल भावना है, और सीसीटीवी कैमरे इस प्रक्रिया का अहम हिस्सा हैं।
