राजधानी दिल्ली की हवा को स्वच्छ और पर्यावरण को हराभरा बनाने की दिशा में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक कदम उठाया है। सोमवार को जस्टिस सूर्य कांत की अध्यक्षता वाली बेंच ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) को आदेश दिया है कि वह शहर के 18 अलग-अलग इलाकों में कुल 185 एकड़ भूमि तुरंत उपलब्ध कराए और 31 मार्च 2026 तक 1.67 लाख पेड़ लगाए। यह आदेश छतरपुर रिज क्षेत्र में डीडीए द्वारा काटे गए 1000 से अधिक पेड़ों की भरपाई के रूप में जारी किया गया है। कोर्ट ने सख्त शब्दों में कहा कि दिल्ली के “ग्रीन लंग्स” यानी हरे फेफड़ों को किसी भी हाल में नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए।
फरवरी 2024 में डीडीए ने हॉस्पिटल रोड निर्माण के लिए छतरपुर रिज क्षेत्र में पेड़ काटे थे। इस पर दायर याचिका में शिकायत की गई कि यह कार्य न्यायालय की अनुमति के बिना किया गया, जबकि 1996 के एम.सी. मेहता बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के फैसले के अनुसार रिज क्षेत्र में पेड़ काटने से पहले अदालत की अनुमति अनिवार्य है। सुनवाई के दौरान यह सामने आया कि उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना को इस अवैध कटाई की जानकारी जून में मिली थी। अदालत ने माना कि सड़क निर्माण जनहित में था, इसलिए अवमानना की सजा को माफ कर दिया गया, लेकिन डीडीए को सख्त चेतावनी दी कि भविष्य में किसी भी परियोजना फाइल में संबंधित कोर्ट केस का स्पष्ट उल्लेख अनिवार्य होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पूरे शहर में ऑक्सीजन संतुलन बनाए रखने के लिए 18 अलग-अलग इलाकों में ग्रीन पॉकेट्स विकसित किए जाएंगे, क्योंकि एक ही जगह 185 एकड़ भूमि उपलब्ध कराना संभव नहीं है। विशेषज्ञ समिति ने पहले चयनित स्थलों को अनुपयुक्त मानते हुए नई साइटों का चयन किया है। चूंकि सर्दियों में पौधारोपण संभव नहीं, इसलिए अदालत ने मार्च 2026 तक का समय दिया है। डीडीए ने इस अफ़ॉरेस्टेशन कार्य के लिए 46.13 करोड़ रुपये जारी किए हैं, और आवश्यकता पड़ने पर अतिरिक्त राशि भी दी जाएगी।
कोर्ट ने यह भी कहा कि केवल पेड़ लगाना पर्याप्त नहीं होगा। प्रत्येक स्थल पर मजबूत परिधि दीवार बनाई जाएगी ताकि हरित क्षेत्र सुरक्षित रहे। सभी जगहों पर देशी प्रजातियों के पौधे लगाए जाएंगे, जिनके रखरखाव की विस्तृत योजना विशेषज्ञ समिति ने तैयार कर ली है। अदालत ने निर्देश दिया है कि हर छह महीने में पौधारोपण और संरक्षण की फोटो-वीडियो रिपोर्ट जमा की जाए, और सभी स्थलों की भूमि उपयोग श्रेणी को फॉरेस्ट ज़ोन में बदला जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यह मामला फिलहाल बंद नहीं किया जाएगा। डीडीए और दिल्ली सरकार को हर चरण पर जवाबदेही निभानी होगी, जबकि विशेषज्ञ समिति स्वतंत्र रूप से रिपोर्टिंग जारी रखेगी। अदालत ने कहा कि यह पहल दिल्ली को फिर से हराभरा और सांस लेने योग्य बनाने की दिशा में एक दीर्घकालिक प्रयास है, जिससे आने वाले वर्षों में राजधानी की वायु गुणवत्ता और जीवन स्तर दोनों में सुधार देखने को मिलेगा।
