नई दिल्ली: दिल्ली यूनिवर्सिटी (DU) अपनी सेंट्रल लाइब्रेरी को आधुनिक जमाने के अनुसार ढालने की तैयारी में है। लाइब्रेरी के विस्तार के बाद छात्रों के बैठने की क्षमता वर्तमान 700 सीटों से बढ़कर लगभग 3,400 सीटें हो जाएगी। यह सिर्फ संरचनात्मक बदलाव नहीं होगा, बल्कि लाइब्रेरी को डिजिटल सुविधाओं से भी लैस किया जाएगा, जिससे छात्रों और शोधकर्ताओं के अध्ययन का अनुभव और बेहतर होगा।
सेंट्रल लाइब्रेरी का इतिहास 1922 से शुरू हुआ, जब इसकी शुरुआत केवल 1,380 किताबों और 86 पत्रिकाओं के साथ हुई थी। आज इसका संग्रह बढ़कर 6,50,000 से अधिक किताबों तक पहुंच गया है। लाइब्रेरी में मुगल बादशाह औरंगजेब के तीन मूल फरमान, 18वीं-19वीं सदी की दुर्लभ पांडुलिपियां, जॉर्ज मेरेडिथ की कविताएं, एडब्ल्यू किंगलेक की ईथेन और भारत के पुराने मानचित्र शामिल हैं।
लाइब्रेरी की खासियत इसकी बर्मा टीक अलमारियां हैं, जिसमें 27,000 से अधिक थीसिस रखी गई हैं। पहली थीसिस 1958 में जमा हुई थी, जिसका शीर्षक था ‘भागवत पुराण का एक आलोचनात्मक अध्ययन’। दुर्लभ पुस्तक रूम शोधकर्ताओं के लिए आकर्षण का केंद्र है।
अब लाइब्रेरी का विस्तार किया जा रहा है। तीन नए चार-मंजिला विंग बनेंगे और क्षेत्रफल 4,775 स्क्वायर मीटर से बढ़कर 18,525 स्क्वायर मीटर हो जाएगा। इसमें बायोमेट्रिक गेट और मेटालिक चिप्स वाली किताबें शामिल होंगी। विस्तार की लागत 110 करोड़ रुपये है। पहले चरण का काम फरवरी 2025 में शुरू हुआ और दिसंबर तक पूरा होने का अनुमान है।
डिजिटलाइजेशन की योजना के तहत पांडुलिपियों और दुर्लभ किताबों को संरक्षित किया जाएगा। डीयू ई-लाइब्रेरी पोर्टल के जरिए छात्र 17.5 लाख संसाधनों तक ऑनलाइन पहुंच प्राप्त कर सकेंगे। इस पहल से सेंट्रल लाइब्रेरी न केवल आधुनिक बनेगी, बल्कि शोध और अध्ययन के लिए सशक्त और स्मार्ट केंद्र के रूप में उभरेगी।
यह बदलाव दिल्ली यूनिवर्सिटी की सेंट्रल लाइब्रेरी को एक आधुनिक, डिजिटल और ऐतिहासिक धरोहर संरक्षित केंद्र बनाएगा, जो छात्रों और शोधकर्ताओं के लिए ज्ञान और संसाधनों का अनमोल भंडार साबित होगा।
